वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: अंतरिम राहत के लिए ठोस आधार जरूरी

नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को अहम सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति जॉर्ज ऑगस्टीन मसीह की पीठ ने कहा कि किसी भी अंतरिम आदेश से पहले याचिकाकर्ताओं को बेहद मजबूत और स्पष्ट मामला पेश करना होगा। अदालत ने दो टूक कहा कि जब तक कोई ठोस कानूनी आधार नहीं दिया जाएगा, तब तक कानून को संवैधानिक माना जाएगा।

यह मामला उस नए वक्फ संशोधन कानून से जुड़ा है, जिसे केंद्र सरकार ने मार्च 2025 में अधिसूचित किया था और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू कर दिया गया। इस कानून के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं।

केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि सुनवाई को तीन अहम बिंदुओं तक सीमित रखा जाए—जिनमें वक्फ घोषित संपत्तियों को अदालतों, उपयोगकर्ताओं या विलेख के माध्यम से गैर-अधिसूचित करने की शक्ति शामिल है। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस तरह टुकड़ों में सुनवाई नहीं की जा सकती, क्योंकि यह कानून पूरी वक्फ प्रणाली को प्रभावित करता है।

सिब्बल ने तर्क दिया कि यह अधिनियम दिखावे में वक्फ संपत्तियों की रक्षा का दावा करता है, जबकि वास्तव में यह कार्यपालिका को गैर-न्यायिक तरीके से वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण देने की कोशिश है। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि इस कानून के प्रभाव से कई धार्मिक स्थलों पर इबादत तक रुक सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह पूर्व वक्फ अधिनियम, 1995 के किसी प्रावधान पर रोक लगाने की मांग पर फिलहाल विचार नहीं करेगा। हालांकि अदालत ने केंद्र और याचिकाकर्ताओं को 19 मई तक लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था और अगली सुनवाई 20 मई को तय की गई है।

इस बीच केंद्र सरकार ने अदालत को आश्वासन दिया है कि किसी भी वक्फ संपत्ति को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा, न ही किसी नई नियुक्ति की जाएगी।

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