तेज बारिश और बढ़ते जलस्तर ने एक बार फिर आदिवासी समुदाय की मेहनत पर पानी फेर दिया। बस्तर क्षेत्र की इंद्रावती नदी में अचानक आई बाढ़ के चलते सैकड़ों बोरी तेंदूपत्ता बह गए, जिससे करोड़ों रुपये का नुकसान बताया जा रहा है।
हर साल की तरह इस साल भी आदिवासी परिवारों ने मई-जून की तपती धूप में तेंदूपत्ता तोड़कर संग्रह किया था। यह पत्ते न सिर्फ उनकी आजीविका का प्रमुख साधन हैं, बल्कि राज्य की वन आधारित अर्थव्यवस्था में भी इनका बड़ा योगदान होता है। लेकिन बीते दो दिनों से हो रही मूसलधार बारिश ने सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।
ग्रामीणों ने बताया कि पत्तों को सुखाकर गांव के पास ही एकत्र किया गया था। बारिश के साथ अचानक इंद्रावती नदी का जलस्तर बढ़ा और पत्तों से भरी सैकड़ों बोरी पानी में बह गईं। कई जगहों पर तेंदूपत्ते बिखरकर पानी में तैरते नजर आए, जिन्हें बचाने की कोशिश भी ग्रामीणों ने की, लेकिन तेज बहाव के आगे वे असहाय रहे।
वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि नुकसान का आकलन किया जा रहा है। शुरुआती अनुमान के मुताबिक करीब 3 से 4 करोड़ रुपये का तेंदूपत्ता बर्बाद हुआ है। विभाग और जिला प्रशासन राहत कार्यों की तैयारी कर रहा है और प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने की प्रक्रिया भी जल्द शुरू की जाएगी।
क्या है तेंदूपत्ते का महत्व?
तेंदूपत्ता बीड़ी बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है और मध्य भारत के लाखों परिवारों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह एक बड़ा वन उत्पाद है, जिससे सरकार को भी करोड़ों का राजस्व मिलता है।
स्थानीय लोगों की मांग
ग्रामीणों ने सरकार से मांग की है कि तेंदूपत्ता संग्रहण स्थल को सुरक्षित और ऊंचे स्थानों पर बनाया जाए ताकि भविष्य में इस तरह के नुकसान से बचा जा सके। साथ ही उन्होंने मुआवजे की त्वरित प्रक्रिया की भी मांग की है।