सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम (POCSO) के तहत दोषी ठहराए गए युवक को सजा नहीं दी जाएगी। पीड़िता अब आरोपी से विवाह कर चुकी है और एक बच्चे की मां है। न्यायालय ने यह भी माना कि पीड़िता को आरोपी को सजा से बचाने के लिए पुलिस और अदालत के लगातार चक्कर लगाने पड़े, जिससे वह कानून व्यवस्था की खामियों से अधिक पीड़ित हुई।
पीठ ने यह टिप्पणी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत की, जो सुप्रीम कोर्ट को संपूर्ण न्याय देने के लिए विशेष शक्तियाँ प्रदान करता है। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि इस मामले ने समाज, परिवार और कानून व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है।
कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को आवश्यक कदम उठाने और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्देशित किया है कि वह इस तरह के मामलों को लेकर नीति-निर्माण पर विचार करे।
पीड़िता का संघर्ष:
घटना 2018 की है, जब 14 वर्षीय लड़की अपने घर से लापता हो गई थी। उसकी मां ने 25 वर्षीय युवक पर अपहरण का आरोप लगाया। बाद में यह पता चला कि लड़की युवक के साथ विवाह कर चुकी है। 2022 में निचली अदालत ने युवक को दोषी ठहराते हुए 20 साल की सजा सुनाई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने परिस्थितियों को देखते हुए राहत दी है।
अनुच्छेद 142 का उपयोग:
कोर्ट ने कहा कि इस केस में “संपूर्ण न्याय” के सिद्धांत के तहत निर्णय लिया गया। पीड़िता आरोपी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ चुकी है और अब उसका परिवार है। उसे आरोपी को सजा से बचाने के लिए जिस संघर्ष से गुजरना पड़ा, वह अत्यंत पीड़ादायक है।
पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश:
कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह इस मामले में आवश्यक कार्रवाई करे, साथ ही महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को भी नोटिस जारी किया है ताकि भविष्य में ऐसे मामलों में पीड़िताओं को न्याय और सहयोग मिल सके।