‘पाताललोक’ से दर्शकों के दिलों में जगह बनाने वाले अभिषेक बनर्जी अब फिल्म स्टोलेन में एक नए अवतार में नजर आते हैं। लेकिन क्या यह किरदार उनके हथौड़ा त्यागी के स्तर को छू पाया? इस सवाल का जवाब देने के लिए फिल्म को 90 मिनट तक देखना पड़ेगा।
फिल्म की कहानी दो भाइयों की एक भावनात्मक और तनावपूर्ण यात्रा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक छोटे स्टेशन पर एक मासूम बच्ची के अपहरण से शुरू होती है। फिल्म में हॉलीवुड की ‘Taken’ जैसी थ्रिलर फिल्मों की झलक दिखती है, लेकिन हिंदी दर्शकों को कहानी में नया पन कम ही मिलता है।
निर्देशक करण तेजपाल की यह फिल्म भले ही तकनीकी रूप से मजबूत हो, लेकिन स्क्रिप्ट की कमजोरी दर्शकों को बांधे रखने में असफल रहती है। अभिषेक बनर्जी का अभिनय प्रभावशाली है, लेकिन पटकथा की पूर्वानुमेयता फिल्म की गति को कम कर देती है।
मिया मैजलर और शुभम ने अपने-अपने किरदारों में सशक्त प्रदर्शन दिया है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और लो-लाइट टोन दर्शकों को सस्पेंस का एहसास कराने की कोशिश करती है, लेकिन इमोशनल कनेक्शन की कमी इसके प्रभाव को कमजोर करती है।
स्टोलेन एक वन टाइम वॉच जरूर है, खासकर उनके लिए जो हिंदी में हॉलीवुड-स्टाइल थ्रिलर देखना पसंद करते हैं।