सोमनाथ शिवलिंग के अंश मेरे पास हैं: श्री श्री रविशंकर के दावे से संत समाज में खलबली, उठे आस्था और अधिकार के सवाल

सोमनाथ मंदिर – एक ऐसा नाम जो सनातन परंपरा, श्रद्धा और भारतीय आस्था की आत्मा से जुड़ा है। भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला और सबसे प्राचीन माना जाने वाला यह मंदिर सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की भावना का प्रतीक है। लेकिन अब यह दिव्यता विवादों की जद में आ गई है। वजह बनी है एक ऐसा दावा, जिसने साधु-संतों से लेकर आम श्रद्धालुओं तक को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

दरअसल, प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु और ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने हाल ही में एक कार्यक्रम में दावा किया कि उनके पास सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के अंश मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि ये अंश उन्हें एक परम श्रद्धालु साधु से प्राप्त हुए थे, जिन्होंने इतिहास के काले दौर में शिवलिंग को टूटने से बचाने की कोशिश की थी।

उनके इस बयान ने पूरे संत समाज को झकझोर दिया है। जहां एक ओर कुछ अनुयायी इसे आध्यात्मिक दृष्टि से अनूठी घटना मान रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शंकराचार्यों, अखाड़ों और अनेक महंतों ने इसे आस्था से खिलवाड़ बताते हुए विरोध दर्ज किया है।

शंकराचार्य परिषद के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने कहा, “ज्योतिर्लिंग कोई वस्तु नहीं है जिसे कोई अपने पास रखे। यह परम श्रद्धा का प्रतीक है। अगर ऐसे दावे खुलेआम होने लगें, तो आस्था का मूल ही डगमगा जाएगा।” उन्होंने श्री श्री रविशंकर से सार्वजनिक रूप से प्रमाण प्रस्तुत करने और स्पष्टीकरण देने की मांग की है।

वहीं, सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट ने इस पर फिलहाल चुप्पी साध रखी है, लेकिन अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, ट्रस्ट इस मामले की गंभीरता से समीक्षा कर रहा है। मंदिर की प्रतिष्ठा और देशभर के श्रद्धालुओं की भावना को ध्यान में रखते हुए, ट्रस्ट भविष्य में इस पर आधिकारिक रुख साफ कर सकता है।

इतिहास में झांके तो स्पष्ट होता है कि सोमनाथ मंदिर पर बार-बार हमले हुए और उसे कई बार ध्वस्त किया गया। लेकिन हर बार यह मंदिर पहले से अधिक भव्यता के साथ पुनः स्थापित हुआ। ऐसे में श्री श्री रविशंकर का यह दावा, यदि सच साबित होता है, तो यह न केवल इतिहास को नया मोड़ देगा, बल्कि पुरातत्व और धर्मशास्त्र के कई सवालों को भी जन्म देगा।

परंतु यही दावा, यदि सिर्फ एक व्यक्तिगत अनुभूति पर आधारित निकला, तो यह श्रद्धा को गहरा आघात भी पहुंचा सकता है। क्योंकि भारत में ज्योतिर्लिंग कोई ऐतिहासिक अवशेष नहीं, बल्कि जीवंत देवता माने जाते हैं।

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