देश की न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी को लेकर समय-समय पर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। लेकिन जब बारी आती है उन्हें वास्तविक सम्मान देने की, तो कुछ चेहरे अचानक से पीछे हट जाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी के साथ।
सम्मान समारोह में दिखी ‘चयनात्मक श्रद्धा’
हाल ही में एक बड़े सार्वजनिक मंच पर देश की न्यायपालिका और संविधान रचयिताओं को सम्मानित किया जा रहा था। मंच पर कई चर्चित नामों को बुलाया गया, फूलमालाएं चढ़ीं, तालियां बजीं — लेकिन इन सबके बीच एक नाम जिसकी अनुपस्थिति हर किसी को खटकी — वह थी जस्टिस बेला त्रिवेदी।
कौन हैं बेला त्रिवेदी?
गुजरात हाईकोर्ट से शुरू कर सुप्रीम कोर्ट तक का सफर तय करने वाली बेला त्रिवेदी, भारत की पहली कुछ महिला न्यायाधीशों में शुमार हैं जिन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी नारी शक्ति का परचम लहराया। वे सिर्फ एक जज नहीं, बल्कि न्यायिक प्रणाली में महिला सशक्तिकरण की प्रतीक मानी जाती हैं।
वजह क्या थी? अनदेखी या साजिश?
समारोह के आयोजकों ने इस पर कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की, लेकिन सोशल मीडिया पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। यूज़र्स कह रहे हैं —
“यह न केवल एक महिला जज का अपमान है, बल्कि यह उन सभी महिलाओं का अपमान है जो न्यायपालिका में अपनी जगह बना रही हैं।”
राजनीतिक गलियारों में भी इस मुद्दे की हलचल है। कई लोग इसे ‘चयनात्मक सराहना’ बता रहे हैं और कह रहे हैं कि —
“बेला त्रिवेदी को नजरअंदाज कर इन लोगों ने खुद को बेनकाब कर दिया है।”
क्या यह एक बड़ी सोच का आइना है?
कई विश्लेषक मानते हैं कि यह घटना बताती है कि आज भी संस्थानों में महिलाओं को केवल प्रतीकात्मक रूप से स्थान दिया जाता है, असली पहचान और सम्मान से अब भी वे दूर हैं।
अब सवाल ये उठता है—
क्या यह महज़ चूक थी या सोच-समझकर की गई अनदेखी?
क्या न्याय के मंदिर में भी सम्मान का बंटवारा ‘चेहरे देखकर’ होता है?