छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के बजरमुंडा गांव में एक चौंकाने वाला मुआवजा घोटाला सामने आया है, जिसमें प्राकृतिक और निर्माण संपत्तियों की आड़ में सरकारी धन की जमकर बंदरबांट की गई। यह मामला वर्ष 2020 में अडानी समूह की कंपनी को ज़मीन अधिग्रहण के एवज में दिए गए मुआवजे से जुड़ा है। सरकार द्वारा निर्धारित 100 पात्र परिवारों के स्थान पर कुल 415 करोड़ रुपए 7 अफसरों ने मिलकर 415 लोगों में बांट दिए। इस पूरी प्रक्रिया में गंभीर गड़बड़ियों और धोखाधड़ी की परतें खुलती जा रही हैं।
घोटाले का तरीका:
जांच में यह सामने आया है कि लोगों ने केवल मुआवजा पाने के लिए फर्जी तरीके से घर और शेड बनवा दिए। जिन खेतों में पेड़ कभी लगे ही नहीं थे, वहां एक ही पेड़ को 10 अलग-अलग जगहों पर दिखाकर मुआवजा लिया गया। मुआवजा मिलते ही मकान और पेड़ों के सबूत मिटा दिए गए, ताकि भविष्य में कोई जांच न हो सके। कई लोगों ने अस्थायी शेड या झोपड़ी बनाकर उन्हें ‘मकान’ घोषित कर दिया और करोड़ों रुपए की राशि हड़प ली।
जांच रिपोर्ट के चौंकाने वाले तथ्य:
2023 में मुआवजा वितरण की जांच रिपोर्ट के अनुसार, 34 ऐसे फर्जी मामले पाए गए, जहां वास्तविक पात्रता नहीं थी। 300 झोपड़ियों को पक्के मकान दिखाकर 126 करोड़ रुपए का मुआवजा बांटा गया। एक ही व्यक्ति के नाम पर कई बार मुआवजा लिया गया। इतना ही नहीं, कुछ स्थानों पर जहां पानी की टंकी या बोरवेल भी नहीं था, वहां जलस्रोत होने की झूठी जानकारी देकर राशि ली गई।
इन अफसरों की भूमिका संदिग्ध:
इस पूरे घोटाले में 7 अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है, जिनमें तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और पटवारी जैसे राजस्व विभाग के अधिकारी शामिल हैं। इन पर अब एफआईआर की तैयारी चल रही है।
मुख्य बिंदु (सीधी बात):
बजरमुंडा में 100 परिवारों के बदले 415 को मुआवजा दिया गया।
फर्जी मकान और पेड़ दिखाकर 415 करोड़ की बंदरबांट हुई।
मुआवजा मिलते ही घर और सबूत मिटा दिए गए।
126 करोड़ झोपड़ियों को मकान बताकर बांटे गए।
जलस्रोत और खेती का झूठा दावा करके भी रकम ली गई।
जांच रिपोर्ट के आधार पर अब दोषी अफसरों पर एफआईआर की तैयारी है।