“कागज़ों पर हरियाली, ज़मीन पर वीरानी: फाइलों में ही दबकर रह गए वृक्षारोपण के वादे

रायपुर: हर वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर बड़े स्तर पर पौधारोपण के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष सरकार ने 3 करोड़ 85 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा था, जिसका उद्देश्य था देश में हरियाली को बढ़ावा देना और कार्बन उत्सर्जन को कम करना।

लेकिन सवाल यह है कि क्या यह लक्ष्य वास्तव में पूरा हो पाया? क्या वृक्ष केवल लगाए गए या उनकी देखरेख और संरक्षण भी हुआ?

वास्तविकता यह है कि पौधे लगाने की योजनाएं अक्सर कागज़ों पर सजी रहती हैं। विभिन्न रिपोर्ट्स और जनहित सूचनाओं से पता चलता है कि कई स्थानों पर पौधे लगाए ही नहीं गए, और जहाँ लगाए गए, वहाँ उनकी निगरानी और देखभाल का कोई पुख्ता प्रबंध नहीं था। इस कारण से हजारों पौधे कुछ ही महीनों में सूख जाते हैं या नष्ट हो जाते हैं।

सिर्फ वृक्षारोपण करना पर्याप्त नहीं, बल्कि जरूरी है कि लगाए गए पौधे स्थायी वृक्ष बनें और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा बनें।

आज देश के कई हिस्सों में तेजी से जंगलों की कटाई हो रही है। इसके कारण न सिर्फ जैव विविधता पर असर पड़ रहा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन का खतरा भी बढ़ रहा है। प्राकृतिक वनों का संरक्षण आज की सबसे बड़ी जरूरत है क्योंकि इन वनों की पारिस्थितिकी, वन्यजीवों और स्थानीय समुदायों के साथ सहअस्तित्व की भूमिका अतुलनीय है।

पौधा रोपण अभियान के दौरान अक्सर साल, पीपल, आंवला, महुआ, जामुन जैसे पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण वृक्षों की जगह सजावटी पौधों को लगाया जाता है जो ऑक्सीजन या छांव देने में सक्षम नहीं होते।

जलवायु परिवर्तन के संकेत स्पष्ट हैं – समय से पहले मानसून, तेज गर्मी, जल स्तर में गिरावट और असंतुलित मौसम चक्र। अगर यही स्थिति रही तो सिर्फ कागजों में पेड़ लगाने से पर्यावरण नहीं बचेगा।

सच्चे अर्थों में पर्यावरण संरक्षण का मतलब है —

  • प्राकृतिक जंगलों की रक्षा
  • शुद्ध वृक्षारोपण एवं उसकी देखभाल
  • फॉसिल ईंधन का कम उपयोग
  • स्थानीय वन प्रजातियों का संरक्षण

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