बस्तर की धरोहर और गोंड मुरिया जनजाति की आत्मा कहे जाने वाले पंडी राम मंडावी को पद्मश्री से नवाजा गया है। वर्षों से आदिवासी लोक-संस्कृति के संरक्षण में जुटे मंडावी ने न केवल परंपरागत नृत्य, संगीत और कलाओं को जीवित रखा, बल्कि उसे भारत और दुनिया के मंच तक पहुँचाया।
शुरुआत गांव से, पहचान अंतरराष्ट्रीय मंच तक
छत्तीसगढ़ के दूरस्थ गांवों में पले-बढ़े मंडावी ने बचपन से ही गोंड-मुरिया जनजाति की परंपराओं को आत्मसात किया। जहां आधुनिकता ने पुरानी विधाओं को भुला दिया, वहीं मंडावी ने घोटुल, मांदर, परब और देवराज नृत्य जैसे विलुप्त होती परंपराओं को संजोया और प्रस्तुत किया।
लोगों ने कहा- “हमारे बस्तर की शान हैं मंडावी जी”
पद्मश्री की घोषणा के साथ ही पूरे बस्तर में खुशी की लहर दौड़ गई। स्थानीय लोगों ने ढोल-नगाड़ों के साथ उनका स्वागत किया। सोशल मीडिया से लेकर गांव की चौपाल तक हर जगह मंडावी के योगदान की चर्चा रही।
कहते हैं मंडावी:
“मेरे लिए यह पुरस्कार केवल मेरा नहीं, पूरे बस्तर और हमारी जनजाति की संस्कृति का है। जब कोई युवा पारंपरिक वाद्ययंत्र उठाता है या घोटुल में नृत्य करता है, तो मुझे लगता है कि मेरी मेहनत सफल हो रही है।”
कला के साथ जीवन समर्पित किया
मंडावी ने कभी बड़े मंच या आर्थिक लाभ के लिए काम नहीं किया। उन्होंने माटी, मन और मुरिया संस्कृति को ही अपनी जिंदगी बना लिया। उन्होंने सैकड़ों युवाओं को लोकनृत्य, गीत और पारंपरिक जीवनशैली की शिक्षा दी, ताकि यह विरासत आगे भी जीवित रहे।
सम्मान से बढ़ा संकल्प
पद्मश्री के बाद अब मंडावी की योजना है कि बस्तर में एक लोक-संस्कृति प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया जाए, जहां नई पीढ़ी आदिवासी कला को सीख सके और विश्व पटल पर पहचान दिला सके।
छत्तीसगढ़ सरकार और बस्तरवासियों ने जताया गर्व
मुख्यमंत्री समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें बधाई दी और कहा कि मंडावी ने बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को जो सम्मान दिलाया है, वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।