“यह सिर्फ आर्थिक नहीं, नैतिक संकट है। सरकार को जनता की तकलीफ दिखनी चाहिए, भाषणों से पेट नहीं भरता।”

कमलनाथ ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। मंच से बोलते हुए उन्होंने कहा – “देश की रसोई में चूल्हा ठंडा है और दिल्ली की सत्ता में चेहरे गर्म। आम आदमी की जेब खाली हो रही है, लेकिन सरकार आंखें मूंदे बैठी है।”

कमलनाथ ने कहा कि महंगाई अब केवल आर्थिक नहीं, मानवीय संकट बन चुकी है।

सब्जी से लेकर स्कूल फीस तक हर चीज़ आसमान छू रही है।

रसोई गैस, पेट्रोल, दालें – सब आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं।

उन्होंने सरकार से तीखे सवाल पूछे:

क्या ‘अच्छे दिन’ का मतलब यही था?

क्या विकास का मतलब अमीरों की जेब भरना है?

कमलनाथ ने कहा, “सरकार महंगाई पर नहीं, मन की बात पर व्यस्त है। लेकिन जनता अब जवाब मांग रही है – काम की बात कब होगी?”

संदेश साफ था:

कमलनाथ का यह भाषण सिर्फ आलोचना नहीं था, एक चेतावनी थी – जनता की सहनशक्ति की सीमा पार हो चुकी है। अगर अब भी सरकार नहीं जागी, तो आने वाले चुनाव में जवाब जनता देगी

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