नेपाल की राजधानी काठमांडू में हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र की बहाली की मांग को लेकर सड़कों पर उबाल देखने को मिला। रविवार (1 जून 2025) को राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) और आरपीपी नेपाल के नेतृत्व में हजारों प्रदर्शनकारी नारायण चौड़ में एकत्र हुए। प्रदर्शनकारियों ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह की तस्वीरें लहराते हुए और प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए राजतंत्र की वापसी और नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग की। इस दौरान पूर्व गृहमंत्री और आरपीपी नेपाल के अध्यक्ष कमल थापा सहित करीब सात प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जब वे निषेधित क्षेत्र बालुवाटार, जो प्रधानमंत्री का आधिकारिक निवास है, की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहे थे। पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल कर भीड़ को तितर-बितर किया, जिसमें कई प्रदर्शनकारी घायल हो गए
क्यों भड़का आंदोलन?
नेपाल में 2008 में 240 साल पुरानी राजशाही को समाप्त कर देश को धर्मनिरपेक्ष, संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था। इसके बाद से पिछले 17 सालों में 13 सरकारें बन चुकी हैं, जिसने सरकारी अस्थिरता, भ्रष्टाचार और आर्थिक चुनौतियों को बढ़ावा दिया है। हाल के महीनों में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह को फिर से सत्ता में लाने और हिंदू राष्ट्र की स्थापना की मांग ने जोर पकड़ा है। 2024 में हिमालमीडिया के एक सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग आधे लोग नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने और धर्मनिरपेक्षता को उलटने के पक्ष में हैं। 9 मार्च 2025 को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के काठमांडू हवाई अड्डे पर पहुंचने पर हजारों समर्थकों ने उनका स्वागत किया, जिसने इस आंदोलन को और हवा दी।
कमल थापा और आरपीपी की भूमिका
कमल थापा, जो आरपीपी नेपाल के अध्यक्ष और पूर्व उपप्रधानमंत्री हैं, लंबे समय से हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र की बहाली के लिए मुखर रहे हैं। उन्होंने कहा, “गणतंत्र, संघीयता और धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने का समय आ गया है।” थापा ने यह भी सुझाव दिया कि यदि राष्ट्रीय सहमति बनती है, तो पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के पोते हृदयेन्द्र शाह को राजा बनाया जा सकता है। आरपीपी के अध्यक्ष राजेंद्र लिंगदेन ने गिरफ्तारी के बाद चेतावनी दी कि प्रदर्शन और तेज होंगे। थापा को नक्सल-नारायण चौड़ क्षेत्र से हिरासत में लिया गया, जहां उन्होंने पुलिस बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की थी।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
नेपाल में हिंदू राष्ट्र और राजतंत्र की मांग ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीव्र बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पहचान की वापसी के रूप में देखते हैं, जबकि अन्य इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा मानते हैं। विपक्षी नेता और माओवादी केंद्र के अध्यक्ष पुष्प कमल दहाल ‘प्रचंड’ ने चेतावनी दी है कि राजतंत्र समर्थक ताकतों को लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर ही अपनी जगह बनानी होगी, वरना “कठोर क्रांति” का जवाब दिया जाएगा। दूसरी ओर, बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोइराला ने भी सोशल मीडिया पर संवैधानिक राजतंत्र और हिंदू राष्ट्र की बहाली का समर्थन किया है, जिसने इस मुद्दे को और चर्चा में ला दिया है।
सरकार और पुलिस का रुख
नेपाल सरकार ने काठमांडू में नारायणहिटी पैलेस म्यूजियम क्षेत्र को निषेधित क्षेत्र घोषित कर दिया है, और 8 जुलाई तक वहां प्रदर्शन पर रोक है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने हिंसक प्रदर्शनों के बाद आपातकालीन कैबिनेट बैठक बुलाई थी। सरकार ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र की सुरक्षा में लगे कर्मियों को 25 से घटाकर 16 कर दिया है, जिसे राजतंत्र समर्थक एक राजनीतिक कदम मान रहे हैं। पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारी निषेधित क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे, जिसके कारण गिरफ्तारियां और लाठीचार्ज जरूरी हो गया।
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।