राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), जो कभी महाराष्ट्र की राजनीति की सबसे ताकतवर आवाजों में से एक थी, आज आंतरिक संघर्ष और टूटन के दौर से गुजर रही है। हाल के घटनाक्रमों में पार्टी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र अध्यक्ष जयंत पाटिल द्वारा अपने पद से हटने के संकेत और शरद पवार के भावुक बयान ने न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं को चौंकाया, बल्कि पूरे राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है।
जयंत पाटिल का आत्मनिरीक्षण: जिम्मेदारी से हटने की तैयारी
जयंत पाटिल, जो NCP के सबसे अनुभवी नेताओं में गिने जाते हैं, लंबे समय से संगठन का नेतृत्व संभाल रहे हैं। उनका पार्टी से जुड़ाव केवल पद तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने NCP को जमीनी स्तर तक मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई है।
हालांकि, हाल ही में उन्होंने अपने एक बयान में कहा:
> “अब समय आ गया है कि नई पीढ़ी को जिम्मेदारी दी जाए। संगठन को नई ऊर्जा और नए नेतृत्व की जरूरत है।”
उनके इस बयान को इस्तीफे की प्रस्तावना के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जयंत पाटिल का यह कदम पार्टी में युवा नेताओं को मौका देने की रणनीति का हिस्सा है। लेकिन इसके पीछे यह भी माना जा रहा है कि पार्टी में लगातार बढ़ते असंतोष, संगठनात्मक बिखराव और दो धड़ों में बंटी राजनीति ने उन्हें मानसिक रूप से थका दिया है।
शरद पवार की पीड़ा: एक संस्थापक का दर्द
NCP के संस्थापक शरद पवार, जिन्होंने 1999 में कांग्रेस से अलग होकर इस पार्टी की नींव रखी थी, अब पार्टी के भीतर की उठापटक से आहत नजर आ रहे हैं। एक हालिया कार्यक्रम में उन्होंने कहा:
> “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी पार्टी इस तरह टूटेगी। हमने विचारधारा के लिए संघर्ष किया था, लेकिन आज सत्ता की भूख ने उस विचारधारा को ही पीछे छोड़ दिया है।”
शरद पवार के इन शब्दों से साफ है कि वह पार्टी के मौजूदा हालात से बेहद व्यथित हैं। अजित पवार के बगावती रुख और भाजपा के साथ उनकी राजनीतिक साझेदारी को लेकर शरद पवार पहले भी कई बार अप्रत्यक्ष रूप से नाराज़गी जता चुके हैं, लेकिन यह पहला मौका था जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से टूटन को स्वीकारा।
पार्टी में क्या चल रहा है अंदर ही अंदर?
2023 में अजित पवार द्वारा बगावत कर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ गठबंधन में शामिल होना NCP के इतिहास में बड़ा मोड़ था। इससे पार्टी दो हिस्सों में बंट गई—एक शरद पवार गुट और दूसरा अजित पवार गुट।
यह केवल संगठनात्मक विभाजन नहीं था, बल्कि विचारधारा और नेतृत्व को लेकर भी पार्टी के भीतर गहरा संकट उत्पन्न हो गया।
जयंत पाटिल, जो शरद पवार के करीबी माने जाते हैं, लगातार शरद गुट के साथ खड़े रहे। लेकिन राजनीतिक दबाव, संगठन की विखरती ताकत और जनाधार के खिसकने ने शायद उन्हें आत्ममंथन के लिए मजबूर कर दिया है।