मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति डीवी रमण ने अपनी सेवा के अंतिम दिन एक भावुक और साहसी बयान देकर न्यायपालिका के भीतर की पीड़ा को उजागर किया। न्यायमूर्ति रमण ने रिटायरमेंट से महज 13 दिन पहले पद त्याग दिया। उन्होंने कहा कि उनका तबादला गलत मंशा से किया गया और उनके व्यक्तिगत और पारिवारिक हालात की कोई सुनवाई नहीं हुई।
पत्नी की बीमारी के बावजूद नहीं मिला तबादले का विकल्प
जस्टिस रमण ने अपने विदाई भाषण में कहा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को दो बार — 19 जुलाई और 28 अगस्त, 2024 को — अपनी पत्नी की गंभीर चिकित्सकीय स्थिति को देखते हुए अनुरोध भेजा था। उनकी पत्नी पैरोक्सिस्मल नॉन-एपिलेप्टिक सीजर्स (PNES) और COVID-19 के बाद की जटिलताओं से जूझ रही हैं। उन्होंने कर्नाटक में तबादले की मांग की थी ताकि इलाज संभव हो सके, लेकिन उनके अनुरोध पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बिना स्पष्टीकरण के किया गया स्थानांतरण
जस्टिस रमण ने बताया कि उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में बिना किसी कारण बताए स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने इसे “दुर्भावनापूर्ण” बताते हुए कहा कि न्यायपालिका में मानवीयता की कमी है। उन्होंने कहा, “ईश्वर न माफ करता है, न भूलता है। जिन्होंने यह किया, वे भी किसी न किसी रूप में भुगतेंगे।”
न्यायिक सेवा में लगातार संघर्ष
उन्होंने यह भी साझा किया कि उनके करियर की शुरुआत से ही उन्हें कई साजिशों और जांचों का सामना करना पड़ा। उनके परिवार ने हर बार चुपचाप सब कुछ सहा, लेकिन हर कठिनाई के बाद सफलता मिली। उन्होंने मार्टिन लूथर किंग जूनियर के कथन का हवाला देते हुए कहा, “व्यक्ति की असल पहचान संघर्ष के समय में ही होती है।”
अंत में जस्टिस रमण ने कहा, “मैंने अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निभाया। परन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायिक व्यवस्था में भी कई बार न्याय नहीं मिल पाता।”