प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साइप्रस दौरा सिर्फ एक सामान्य द्विपक्षीय भेंट नहीं है—यह एक गंभीर कूटनीतिक संकेत भी है, खासतौर पर तुर्कीए के लिए।
तुर्कीए, जो लगातार भारत के आंतरिक मामलों में बयानबाज़ी करता रहा है—चाहे वो जम्मू-कश्मीर का मुद्दा हो या OIC मंच पर पाकिस्तान का समर्थन—उसे भारत की ये रणनीति एक साफ संदेश देती है: “भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं देता, बल्कि रणनीतिक जवाब देता है।”
क्यों है साइप्रस दौरा अहम?
- साइप्रस और तुर्कीए के बीच लंबे समय से चला आ रहा भू-राजनीतिक विवाद (विशेष रूप से उत्तरी साइप्रस पर तुर्कीए के कब्जे)
- भारत का साइप्रस की संप्रभुता के समर्थन में स्पष्ट रुख
- यूरोप में भारत की उपस्थिति को संतुलित करने और पश्चिम एशिया में संदेश देने की रणनीति
साइप्रस का साथ देना तुर्कीए को यह याद दिलाता है कि भारत भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने विकल्पों और प्रभाव का इस्तेमाल करना जानता है।
मोदी सरकार की विदेश नीति अब “नरम कूटनीति” से आगे निकलकर “रणनीतिक आक्रामकता” की ओर बढ़ रही है।
यह दौरा न केवल साइप्रस को समर्थन देता है, बल्कि तुर्कीए को उसकी सीमाओं का अहसास भी कराता है।