मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी (छत्तीसगढ़):
छत्तीसगढ़ की पंचायत राजनीति में एक बड़ा विवाद सामने आया है। जिला पंचायत अध्यक्ष नम्रता सिंह जैन पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाण पत्र के माध्यम से आरक्षित सीट से चुनाव जीतकर पद हासिल किया। यह मामला अब सामाजिक न्याय, संवैधानिक व्यवस्था और प्रशासनिक पारदर्शिता पर गहरे सवाल खड़े कर रहा है।
कौन हैं नम्रता सिंह जैन?
नम्रता सिंह जैन, जिनके पति का नाम सचिन जैन है, वर्तमान में मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। उनके पिता स्व. नारायण सिंह 1977 बैच के प्रतिष्ठित IAS अधिकारी थे, जिन्होंने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सेवाएँ दीं। साल 2025 के जिला पंचायत चुनाव में नम्रता ने एसटी आरक्षित सीट से जीत हासिल की थी।
मुख्य आरोप: प्रमाण पत्र की वैधता संदिग्ध
शिकायतकर्ता का दावा है कि नम्रता सिंह जैन ने जो एसटी प्रमाण पत्र (जारी: 26/12/2019) प्रस्तुत किया, वह फर्जी है। यह प्रमाण पत्र तत्कालीन संयुक्त कलेक्टर चन्द्रिका प्रसाद बघेल द्वारा जारी किया गया था। आरोप है कि प्रमाण पत्र जारी करने से पहले कोई वैधता जाँच नहीं की गई।
गंभीर सवाल उठाने वाले तथ्य
नम्रता के परिवार का 1950 से पहले छत्तीसगढ़ में कोई निवास प्रमाण नहीं है, जो एसटी प्रमाण पत्र की पात्रता के लिए जरूरी है।
उनके पिता ओडिशा मूल के थे। संविधान के अनुसार, एक राज्य की जनजातीय पहचान दूसरे राज्य में मान्य नहीं होती।
राज्य में 2000 से 2020 के बीच 758 फर्जी प्रमाण पत्रों के मामले सामने आ चुके हैं, जो इस मुद्दे की गंभीरता को दिखाते हैं।
क्या है प्रशासन की भूमिका?
आरोप है कि संयुक्त कलेक्टर ने प्रमाण पत्र जारी करते समय आवश्यक दस्तावेजी जांच नहीं की। जबकि सामान्य प्रशासन विभाग के दिशा-निर्देशों के अनुसार 1950 से पहले के स्थायी निवास का प्रमाण अनिवार्य था, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया।
जाँच में देरी, कार्रवाई की माँग
एसडीएम मोहला ने 26 मई 2025 को जाँच समिति के गठन की पुष्टि की है, लेकिन शिकायतकर्ता ने 15 दिनों में निष्पक्ष और त्वरित जाँच की माँग की है।
शिकायतकर्ता की माँगें:
1. 15 दिनों में जाँच पूरी कर प्रमाण पत्र की सत्यता तय की जाए।
2. फर्जी पाए जाने पर प्रमाण पत्र तत्काल रद्द किया जाए।
3. पंचायत अधिनियम के तहत अध्यक्ष पद से अयोग्य घोषित किया जाए।
4. कानूनी कार्रवाई की जाए, जिसमें बीएनएस, एससी/एसटी एक्ट और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम शामिल हैं।
5. सभी संबंधित दस्तावेज आरटीआई के तहत सार्वजनिक किए जाएं।
संवैधानिक सवाल और भविष्य की राह
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 14, 342 और 243D के उल्लंघन के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का सीधा संदर्भ बनता है।
अब सभी की निगाहें जिला प्रशासन पर हैं कि वह इस प्रकरण में कितनी तेजी और पारदर्शिता से आगे बढ़ता है। संभावना है कि इस विवाद का निपटारा न्यायालय तक पहुंचेगा।