जहानाबाद जेल ब्रेक कांड: एक रात में 389 कैदियों की जेल से भागने की सनसनीखेज घटना

2005 की 13 नवंबर की रात जहानाबाद जेल में एक बड़ा हादसा हुआ, जब माओवादी हमलावरों ने जेल पर धावा बोलकर 658 कैदियों में से 389 को भागने में मदद की। यह जेल ब्रेक कांड उस समय बिहार की कानून-व्यवस्था और प्रशासन की अक्षमता को बखूबी उजागर करता है। इस घटना ने पूरे जहानाबाद शहर को आतंकित कर दिया था और प्रशासन को भी कटघरे में ला खड़ा किया। आइए जानते हैं इस जेल ब्रेक की पृष्ठभूमि, घटना और इसके बाद की कार्रवाई के बारे में।

जहानाबाद जेल ब्रेक की पृष्ठभूमि

1967 के बाद बिहार में वामपंथी आंदोलन ने तेजी पकड़ी। भूमिहीन मजदूरों ने जमींदारों के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन इसके साथ ही हिंसा की लहर भी आई। माओवादियों और जमींदारों के समर्थकों के बीच खूनी संघर्ष चलता रहा, जिससे 1970 से 1990 तक बिहार नरसंहार और हिंसा की त्रासदी में डूब गया। प्रशासन इस हिंसा को रोकने में नाकाम रहा और जेलों में बंद कैदियों की सुरक्षा भी कमजोर थी। माओवादी संगठन एमसीसी का आरोप था कि जेल में उनके समर्थकों के साथ भेदभाव होता था और उन्हें दयनीय हालत में रखा जाता था।

13 नवंबर 2005 की रात क्या हुआ?

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जब पुलिस सुरक्षा मतदान केंद्रों पर लगी थी, उसी रात माओवादी संगठनों ने पुलिस की वर्दी पहन कर और पुलिस वाहन में सवार होकर शहर पर कब्जा जमा लिया। जहानाबाद की ज्यादातर बिजली काट दी गई और माओवादी सीआरपीएफ कैंप, पुलिस स्टेशन, पुलिस लाइन और जेल पर हमला कर दिए। उस रात केवल आठ सुरक्षाकर्मी 600 से अधिक कैदियों की सुरक्षा कर रहे थे। माओवादी हमला बोल कर हथियारखाने का गार्ड घायल कर दिया, कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी गई, और 389 कैदी जेल से भाग निकले। इनमें कई माओवादी कार्यकर्ता और बड़े अपराधी शामिल थे।

घटना के बाद का हाल

जेल से भागे अधिकांश कैदी बाद में लौट आए, क्योंकि प्रशासन ने तीन दिन के अंदर लौटने पर फरार का मुकदमा न करने की घोषणा की थी। हालांकि, कुछ गंभीर अपराधी और माओवादी संगठन के सदस्य वापस नहीं लौटे। इस घटना ने बिहार की कानून व्यवस्था की पोल खोल दी। पुलिस सुपरिटेंडेंट को निलंबित किया गया और केंद्र सरकार ने अर्धसैनिक बलों को राज्य में तैनात किया।

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