नई दिल्ली।
मध्य पूर्व में तनाव चरम पर है। शुक्रवार सुबह इजरायल ने ईरान की परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाते हुए जबरदस्त हवाई हमला किया। इस हमले में ईरान के कई शीर्ष सैन्य अधिकारी मारे गए हैं। जवाब में ईरान ने रात को यरुशलम और तेल अवीव पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। ईरान ने दो बार में लगभग 150 मिसाइलें इजरायल पर दागीं, जिससे दोनों देशों के बीच सीधा युद्ध जैसी स्थिति बन गई है।
इजरायल और ईरान की दुश्मनी का इतिहास
1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान ने इजरायल को अपना सबसे बड़ा दुश्मन घोषित कर दिया था। इससे पहले ईरान और इजरायल के बीच गुप्त रिश्ते रहे थे। इजरायल को अमेरिका का समर्थन प्राप्त था और ईरान के आखिरी शाह मोहम्मद रजा पहलवी के समय दोनों देशों के रणनीतिक हित एक जैसे थे। लेकिन क्रांति के बाद ईरान का झुकाव पूरी तरह अमेरिका और इजरायल विरोध की ओर हो गया।
परमाणु हथियारों को लेकर बढ़ा तनाव
बीते दो दशकों में इजरायल ने ईरान पर परमाणु हथियार विकसित करने का लगातार आरोप लगाया है। हालांकि ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांति पूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का मानना है कि ईरान के पास अब हथियार-स्तरीय यूरेनियम का भंडार है। इजरायल इसे अपने अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा मानता है।
प्रॉक्सी नेटवर्क और कमजोर होता ईरान
ईरान ने गाजा के हमास, लेबनान के हिजबुल्लाह और यमन के हाउती विद्रोहियों जैसे आतंकी संगठनों के माध्यम से एक प्रॉक्सी नेटवर्क तैयार किया था। लेकिन 7 अक्टूबर 2023 के बाद इजरायल के सैन्य अभियानों ने इस नेटवर्क को काफी हद तक कमजोर कर दिया है। सीरिया में भी ईरान के प्रभाव में कमी आई है।
हमला करने का कारण
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ईरान परमाणु बम के बेहद करीब पहुंच चुका था और हमला करने का यही सही समय था। अमेरिका और ईरान के बीच चल रही परमाणु वार्ता विफल रही, जिससे इजरायल को सैन्य कार्रवाई का अवसर मिल गया। आईएईए द्वारा ईरान की निंदा के बाद इजरायल ने निर्णायक हमला कर दिया।
अमेरिका का समर्थन
इस पूरे घटनाक्रम में इजरायल को अमेरिका का अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इजरायल के करीबी माने जाते रहे हैं।