“नई समीकरणों में भारत: भ्रम की धुंध में अवसर की किरण”

जब दो महाशक्तियाँ एक साथ आएं, तो पूरी दुनिया की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं…

चीन के रडार चकनाचूर हुए, अमेरिका का सुपर फाइटर प्लेन ज़मीन चाट गया—और तभी हुआ वो जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी…

अमेरिका और चीन ने एक-दूसरे से हाथ मिला लिया!

अब सवाल ये है — क्या ये नई दोस्ती भारत के लिए खतरे की घंटी है?

रूस भी हैरान है, और भारत के सामने खड़े हैं नए रणनीतिक सवाल…

अमेरिका द्वारा चीन पर लगाए 145% आयात शुल्क घटाकर 30% कर देना कोई सामान्य बात नहीं, बल्कि ये वैश्विक व्यापार संतुलन को पलट देने वाला झटका है। और झटका किसे लगा? सीधा भारत को।

भारत जब ‘विश्व की फैक्ट्री’ बनने का सपना लेकर तेज़ी से आगे बढ़ रहा था, उसी समय अमेरिका और चीन का ये नया समीकरण उसकी मैन्युफैक्चरिंग संभावनाओं के लिए खतरे की घंटी है।ये संयोग नहीं है।

ये एक कूटनीतिक गणना है, जिसमें भारत को झटका देना तय था।

मोदी सरकार ने पूरी ताकत से Make in India को गति दी थी, और वैश्विक सप्लाई चेन में भारत ने अपनी जगह बनाना शुरू कर दिया था।

iPhone से लेकर चिप्स तक, दुनिया भारत की तरफ देखने लगी थी। लेकिन अब इस नए व्यापार समीकरण से ये रफ्तार कमज़ोर पड़ सकती है।

और सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद Apple के CEO टिम कुक को भारत में निवेश न करने की सलाह दी थी—

यह कहते हुए कि भारत दुनिया में सबसे ऊंचे टैरिफ वाला देश है। यानी कूटनीति की दोहरी चाल पहले से चल रही थी।

भारत और चीन के उत्पादों की समानता, भारत से अमेरिका को हो रहे निर्यात में रिकॉर्ड वृद्धि—ये सब संकेत थे कि भारत अमेरिका के लिए एक नया विकल्प बन रहा था। लेकिन अब यही विकल्प एक भ्रम बनकर रह जाए, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

पर तस्वीर अभी पूरी नहीं है। एक ओर जहां अमेरिका और चीन के बीच ये नई नज़दीकी भारत के लिए चिंता का विषय है, वहीं दूसरी ओर यही गठजोड़ लंबी अवधि में भारत के लिए अवसर भी ला सकता है।

अगर भारत आत्मनिर्भरता और निवेश सुधारों को आगे बढ़ाता रहा, तो यही चुनौती एक अवसर में बदल सकती है।

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