हार्वर्ड को विदेशी छात्रों को दाखिला देने से रोकने का ट्रंप प्रशासन का बड़ा कदम, भारतीय छात्रों की चिंता बढ़ी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने से रोकने का बड़ा फैसला लिया है। होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने विश्वविद्यालय को भेजे गए पत्र में स्पष्ट किया कि हार्वर्ड अब विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दे पाएगा। साथ ही, मौजूदा विदेशी छात्रों को या तो स्थानांतरित होना होगा या फिर देश छोड़ना होगा।
हार्वर्ड पर गंभीर आरोप
इस कदम के पीछे कारण बताते हुए ट्रंप प्रशासन ने आरोप लगाया कि हार्वर्ड परिसर में यहूदी विरोधी और आतंकवाद समर्थक गतिविधियों को बढ़ावा दिया गया है। विश्वविद्यालय पर यह भी आरोप है कि उसने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और एक अर्धसैनिक समूह से संबंध बनाए रखे और उनके प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण तक दिया।
होमलैंड सिक्योरिटी का निर्देश
होमलैंड सिक्योरिटी विभाग ने साफ कहा है कि जब तक हार्वर्ड रिपोर्टिंग और SEVP (Student and Exchange Visitor Program) मानकों को पूरा नहीं करता, वह विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दे सकता। विश्वविद्यालय को 72 घंटे में सभी दस्तावेज सौंपने होंगे ताकि उसका SEVP प्रमाणन फिर से बहाल किया जा सके।
क्या यह फैसला वैध है?
अमेरिकी कानून के तहत होमलैंड सिक्योरिटी विभाग को छात्र वीजा प्रबंधन का अधिकार प्राप्त है। विशेषज्ञों के अनुसार, हालांकि अन्य संस्थानों पर पहले भी कार्रवाई हुई है, लेकिन हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय पर यह कदम अभूतपूर्व माना जा रहा है।
भारतीय छात्रों पर प्रभाव
इस फैसले का सीधा असर भारतीय छात्रों पर भी पड़ा है। हर साल लगभग 1,000 भारतीय छात्र हार्वर्ड में दाखिला लेते हैं। वर्ष 2024 में ही 788 भारतीय छात्रों ने दाखिला लिया था, जिन्हें अब अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है।
भारत-अमेरिका शिक्षा संबंधों पर असर
भारतीय छात्र अमेरिकी अर्थव्यवस्था में हर साल लगभग 9 अरब डॉलर का योगदान करते हैं। साथ ही, वे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और अकादमिक संबंधों को भी मजबूत करते हैं। हार्वर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में प्रवेश पर रोक भारत-अमेरिका शैक्षणिक सहयोग के लिए भी झटका है।
विदेशी छात्र संख्या पर असर
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में लगभग 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्र पढ़ते हैं, जो 100 से अधिक देशों से आते हैं। यह संख्या कुल छात्रसंख्या का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। अब इन सभी छात्रों का भविष्य खतरे में नजर आ रहा है।