ग्लेशियरों के लिए संकट का संकेत
एक नई रिपोर्ट ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर पहले की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी से पिघल रहे हैं और यदि वैश्विक तापमान को नियंत्रित नहीं किया गया तो पृथ्वी की जल प्रणाली पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है।
रिपोर्ट के अहम निष्कर्ष
‘साइंस’ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है, तो दुनिया के केवल 24% ग्लेशियर ही बचे रहेंगे। वहीं, यदि तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाए, तो 54% ग्लेशियरों को संरक्षित किया जा सकता है।
संवेदनशील क्षेत्र अधिक प्रभावित
आईसीआईएमओडी की रिपोर्ट के अनुसार, अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के विशाल ग्लेशियरों के आंकड़ों से भ्रम हो सकता है, लेकिन असली खतरा उन पहाड़ी क्षेत्रों में है जहां मानव समुदाय ग्लेशियरों पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, 2 डिग्री तापमान पर कई ग्लेशियरों ने लगभग अपनी पूरी बर्फ खो दी है।
ग्लेशियर: जीवनदायिनी जल स्रोत
ग्लेशियरों को सर्दियों में जमा होने वाली बर्फ और गर्मियों में पिघलने वाली बर्फ के अनुपात से समझा जाता है, जिसे वैज्ञानिक ‘द्रव्यमान संतुलन’ कहते हैं। यह संतुलन बताता है कि किसी क्षेत्र में कितनी जल उपलब्धता होगी। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र, जो भारत, नेपाल सहित आठ देशों को जीवनदायिनी नदियों से जोड़ता है, वहां 2020 के मुकाबले केवल 25% बर्फ बची है।
वैज्ञानिकों की टीम और अध्ययन
10 देशों के 21 वैज्ञानिकों की टीम ने 2 लाख से अधिक ग्लेशियरों पर अध्ययन कर 8 मॉडल के जरिए यह निष्कर्ष निकाला है। रिपोर्ट बताती है कि ग्लेशियर दशकों तक तेजी से पिघलते हैं और फिर सदियों तक धीमी गति से पिघलना जारी रखते हैं, चाहे तापमान बढ़ना रुक भी जाए।
पेरिस समझौता और अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
2015 के पेरिस जलवायु समझौते के तहत 180 से अधिक देशों ने यह संकल्प लिया था कि वैश्विक तापमान को 2 डिग्री से नीचे और 1.5 डिग्री के लक्ष्य के करीब रखा जाएगा। रिपोर्ट कहती है कि यह लक्ष्य अब केवल संकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता बन चुका है।
विशेष रूप से प्रभावित क्षेत्र
रिपोर्ट में यूरोपीय आल्प्स, पश्चिमी अमेरिका, कनाडा के रॉकीज़, आइसलैंड और स्कैंडिनेविया जैसे क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है, जहां 2 डिग्री तापमान वृद्धि से अधिकांश ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। स्कैंडिनेविया में तो बर्फ पूरी तरह खत्म हो जाएगी।
गंभीर चेतावनी
इंसब्रुक यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक डॉ. लिलियन शूस्टर ने कहा कि ग्लेशियरों की स्थिति जितनी हम देखते हैं, उससे कहीं ज्यादा गंभीर है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने भी चेतावनी दी है कि अगला दशक तापमान सीमाओं को पार कर सकता है।
नेपाल के प्रधानमंत्री ने सागरमाथा संवाद में कहा था, “पहाड़ भले दूर हों, लेकिन उनकी सांसें आधी दुनिया को जीवन देती हैं।”