छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शुरू किया गया ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान देखने में एक भावनात्मक और पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने वाली पहल लगती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
इस योजना की आड़ में प्रचार और छवि सुधार की राजनीति ज़्यादा दिखती है, बजाय असल में पेड़ लगाने या पर्यावरण बचाने के। भ्रष्ट तंत्र और आधे-अधूरे क्रियान्वयन के कारण यह कार्यक्रम जनता का विश्वास जीतने में असफल रहा है। कई स्थानों पर सिर्फ आंकड़ों में पेड़ लगाए गए हैं, जबकि ज़मीन पर उनका कोई अता-पता नहीं है।
जब पर्यावरण संरक्षण को सिर्फ प्रचार का ज़रिया बना दिया जाए, तो यह न केवल प्रकृति के साथ धोखा होता है, बल्कि लोगों की भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ होता है। ऐसे में आम नागरिकों का जागरूक और सजग रहना ज़रूरी है, ताकि वास्तविक पर्यावरणीय प्रयासों को पहचान कर उन्हें समर्थन मिल सके।