राष्ट्रपति डॉ. कलाम और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की मुलाकात: जब दो महान आत्माएं एक पल में रो पड़ीं

एक बार राष्ट्रपति के रूप में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने तमिलनाडु के कुन्नूर का दौरा किया। उन्हें जानकारी मिली कि भारतीय सेना के वीर योद्धा, फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, वहीं के सैन्य अस्पताल में इलाजरत हैं। कलाम साहब तुरंत उनसे मिलने पहुंचे।

उन्होंने सैम मानेकशॉ से उनका हालचाल जाना और फिर सादगी से पूछा, “क्या कोई असुविधा है? क्या मैं कुछ मदद कर सकता हूँ जिससे आपको बेहतर महसूस हो?” मानेकशॉ मुस्कराते हुए बोले, “हाँ, मेरी एक शिकायत है।”

कलाम साहब गंभीर हो गए और पूछा, “बताइए सर, क्या शिकायत है?”

सैम बोले, “मेरी शिकायत यह है कि मेरे देश के राष्ट्रपति मेरे सामने खड़े हैं और मैं उन्हें सलामी नहीं दे पा रहा।”

यह सुनते ही दोनों की आंखें नम हो गईं। यह एक ऐसा क्षण था जब दो राष्ट्रभक्तों के बीच भावनाओं की भाषा सर्वोपरि हो गई।

इसके बाद सैम मानेकशॉ ने एक और बात साझा की। उन्होंने बताया कि उन्हें फील्ड मार्शल पद के अनुसार पेंशन की बढ़ी हुई राशि अब तक नहीं मिली है। 2007 में सरकार ने यह निर्णय लिया था कि जीवित फील्ड मार्शलों को सेवा प्रमुखों के बराबर पूर्ण पेंशन दी जाएगी क्योंकि वे कभी सेवानिवृत्त नहीं माने जाते।

दिल्ली लौटने पर डॉ. कलाम ने इस बात को गंभीरता से लिया और महज एक सप्ताह के भीतर ₹1.30 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान सुनिश्चित किया। रक्षा सचिव स्वयं यह चेक लेकर वेलिंग्टन (ऊटी) पहुंचे।

लेकिन, जब मानेकशॉ को यह राशि मिली, उन्होंने वह पूरी राशि सेना राहत कोष में दान कर दी।

यह एक असाधारण क्षण था — जब एक सच्चा योद्धा और एक सच्चे राष्ट्रपति ने देश के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया।

अब आप सोचिए… आप किसे सलाम करेंगे?

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