बढ़ते वैश्विक तापमान से गेहूं, मक्का और जौ की पैदावार में भारी गिरावट, खेती के भविष्य पर मंडराया खतरा

नई दिल्ली: अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते गेहूं की पैदावार में औसतन 10 फीसदी, मक्के में 4 फीसदी, जबकि जौ की उपज में 13 फीसदी तक की कमी देखी गई है। ज्यादातर मामलों में यह नुकसान इतना बड़ा है कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से मिलने वाले फायदों को भी पीछे छोड़ देता है, जबकि यह ग्रीन हाउस गैस प्रकाश संश्लेषण को बढ़ावा देकर पौधों की बढ़त और उपज में सुधार कर सकती है।

दुनियाभर में तेजी से बदलती जलवायु अब खेती को सीधे तौर पर प्रभावित कर रही है। वैश्विक तापमान में वृद्धि और सूखे की बढ़ती घटनाओं के कारण प्रमुख खाद्य फसलों जैसे गेहूं, मक्का और जौ की पैदावार में गंभीर गिरावट आई है।

यह जानकारी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के अध्ययन में सामने आई है। इसके नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित किए गए हैं। अध्ययन के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते गेहूं की पैदावार में औसतन 10 फीसदी, मक्के में 4 फीसदी, जबकि जौ की उपज में 13 फीसदी तक की कमी देखी गई है। ज्यादातर मामलों में यह नुकसान इतना बड़ा है कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से मिलने वाले फायदों को भी पीछे छोड़ देता है, जबकि यह ग्रीन हाउस गैस प्रकाश संश्लेषण को बढ़ावा देकर पौधों की बढ़त और उपज में सुधार कर सकती है। इसका मतलब यह है कि यदि जलवायु परिवर्तन जैसी चरम परिस्थितियां न होतीं, तो इन फसलों की पैदावार मौजूदा स्तर से कहीं बेहतर होती। शोधकर्ताओं का कहना है कि बढ़ती गर्मी और हवा में नमी की कमी, दोनों मिलकर फसलों पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं।

रिपोर्ट में भविष्य की चुनौतियों का दिया गया संकेत
यह रिपोर्ट गत मार्च में प्रकाशित एक अन्य शोध की चेतावनी को भी दोहराती है, जिसमें कहा गया था कि यदि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बड़े निवेश नहीं किए गए तो अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्थाओं की उत्पादकता भी गिर सकती है। इससे साफ है कि भविष्य की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने की भी गंभीर जरूरत है।

जलवायु मॉडल की सीमाएं और खेती की रणनीति पर असर
इस अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि मौजूदा जलवायु मॉडल कई बार वास्तविक स्थिति का सही पूर्वानुमान नहीं लगा पाते। इसका असर किसानों द्वारा अपनाई गई अनुकूलन रणनीतियों पर भी पड़ा है। उदाहरण के तौर पर कुछ क्षेत्रों में देर से पकने वाली किस्मों को बढ़ावा दिया गया ताकि वे लंबे समय तक बढ़ती रहें, लेकिन अब सूखे की तेजी से बढ़ती घटनाएं इन योजनाओं को असफल बना रही हैं।

रोजमर्रा की जिंदगी भी हो रही प्रभावित
अध्ययन के प्रमुख लेखक डेविड लोबेल का कहना है कि हमें सिर्फ प्रमुख अनाजों पर ही नहीं, बल्कि कॉफी, कोको, संतरा और जैतून जैसी फसलों पर भी ध्यान देना होगा जो भले ही भूख मिटाने के लिए जरूरी न हों। इनकी आपूर्ति में रुकावट और कीमतों में उछाल यह बताता है कि जलवायु परिवर्तन का असर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को भी झकझोर सकता है।

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