छत्तीसगढ़ का औषधीय चावल क्रांति: कैंसर, डायबिटीज और कुपोषण से लड़ने में चमत्कारी योगदान

रायपुर, छत्तीसगढ़ – धान का कटोरा कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ अब स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में नई क्रांति ला रहा है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ऐसी विशेष चावल की किस्में विकसित की हैं, जो गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, मधुमेह, डायरिया, और कुपोषण से लड़ने में सहायक हैं। इन चावलों की मांग अब न केवल भारत के विभिन्न राज्यों में, बल्कि चीन, अफ्रीका और अन्य देशों तक पहुँच चुकी है।

धान से दवा तक: छत्तीसगढ़ के चावल की औषधीय शक्ति

छत्तीसगढ़ सरकार और कृषि वैज्ञानिकों के सामूहिक प्रयासों से विकसित की गई ये किस्में केवल भोजन नहीं, बल्कि रोग प्रतिरोधक शक्ति भी प्रदान करती हैं। चलिए जानते हैं इन अद्भुत चावलों के बारे में:

संजीवनी चावल – कैंसर से लड़ाई में प्राकृतिक सहायक

यह किस्म कैंसर रोगियों की इम्यूनिटी बढ़ाने में उपयोगी पाई गई है।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित।

10 दिन के सेवन से ही रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार देखा गया।

मधुराज-55 – डायबिटीज रोगियों के लिए वरदान

इस चावल में शर्करा की मात्रा बेहद कम होती है।

डायबिटीज पेशेंट के लिए ब्लड शुगर नियंत्रण में मददगार

छत्तीसगढ़ जिंक राइस-2 – बच्चों में कुपोषण और डायरिया से सुरक्षा

बच्चों के पोषण के लिए तैयार की गई।

डायरिया और कमजोर इम्यूनिटी से ग्रसित बच्चों को जल्द रिकवरी मिलती है।

प्रोटेजिन – प्रोटीन की कमी और दर्द से राहत

इस किस्म में प्रोटीन अधिक मात्रा में है।

शरीर की मांसपेशियों को ताकत देता है और दर्द से राहत प्रदान करता है।

जिंको राइस एमएस – गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए लाभकारी

कुपोषण से लड़ने वाला चावल।

जिंक, आयरन और पोषण तत्वों से भरपूर।

उत्पादन और वैज्ञानिक विश्लेषण

प्रमुख किस्मों का उत्पादन विवरण:

किस्म पकने की अवधि।    उत्पादन       क्षमता (प्रति हेक्टेयर)

संजीवनी।                 135-140 दिन      35-38 क्विंटल

मधुराज-55               130-135 दिन      40-45 क्विंटल

जिंक राइस-2             120-125 दिन      40-50 क्विंटल

प्रोटेजिन                    124-128 दिन      45-50 क्विंटल

दुबराज सिलेक्शन-1     140-145 दिन      35-42 क्विंटल

23,500 धान किस्में, एक विशाल जैव विविधता भंडार

डॉ. अभिनव साव, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक, बताते हैं कि विश्वविद्यालय के पास 23,500 धान की किस्मों का संग्रह है। इनका उपयोग विभिन्न बीमारियों के खिलाफ लड़ने के लिए किया जा रहा है।

“हमारे शोध का उद्देश्य केवल उच्च उपज नहीं, बल्कि समाज को स्वस्थ बनाना भी है।” – डॉ. साव

वैश्विक मांग और GI टैग की भूमिका

छत्तीसगढ़ के विशिष्ट चावलों को GI टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग) प्राप्त होने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी मांग तेज़ी से बढ़ी है। जीरा फूल, दुबराज, बादशाह भोग जैसे सुगंधित चावल अब विदेशों में भी पसंद किए जा रहे हैं।

कहाँ और कैसे खरीदें?

इन औषधीय चावलों को आप छत्तीसगढ़ के लोकल मार्केट्स, इंडियन ईकॉमर्स वेबसाइट्स (जैसे Amazon, Flipkart) और कृषि विश्वविद्यालय के आउटलेट्स से खरीद सकते हैं।

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