नई दिल्ली: देश की बढ़ती उम्रदराज आबादी को रोजगार में पुनः शामिल करने से राष्ट्रीय आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है। एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि यदि बुजुर्ग श्रमिकों को काम में लगाया जाए तो भारत की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में करीब 1.5 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में बुजुर्गों ने देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 6.8 करोड़ डॉलर का श्रम योगदान दिया है।
बुजुर्गों की भूमिका और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
परमार्थ कार्यों से जुड़ी संस्था रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज की रिपोर्ट में बुजुर्गों द्वारा पारिवारिक देखभाल में 14 अरब घंटे और सामुदायिक कार्यों में 2.6 अरब घंटे की महत्वपूर्ण भागीदारी पर प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट में निष्क्रियता के नकारात्मक प्रभावों के साथ बुजुर्गों को सशक्त बनाने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया है।
2047 तक बुजुर्गों की संख्या 30 करोड़ होगी
रोहिणी निलेकणी फिलान्थ्रॉपीज की चेयरपर्सन रोहिणी निलेकणि ने बताया कि भारत में 2047 तक बुजुर्गों की संख्या 30 करोड़ तक पहुंच जाएगी, जिससे उनके लिए बेहतर देखभाल और रोजगार के अवसर बनाना अत्यंत आवश्यक होगा। उन्होंने कहा, “वृद्ध केवल निर्बल नहीं हैं, बल्कि वे आर्थिक मूल्य सृजन के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।”
विशेषज्ञों की राय और भविष्य की दिशा
डालबर्ग एडवाइजर्स और अशोका चेंजमेकर्स के सहयोग से बनी इस रिपोर्ट ने देश में बुजुर्गों के प्रति सोच को केवल उम्र बढ़ने तक सीमित न रखते हुए बेहतर जीवन स्तर पर केंद्रित किया है। श्वेता टोटापल्ली, डालबर्ग की क्षेत्रीय निदेशक, ने कहा कि भारत में वृद्धावस्था के लिए नए सामाजिक नवाचार तेजी से उभर रहे हैं, जिन्हें और प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
रिपोर्ट का आधार प्रमुख विशेषज्ञों और संगठनों के साथ 10 महीने की बातचीत है। इसमें वृद्धों की आर्थिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कल्याण, सामाजिक भागीदारी की स्वतंत्रता, और सामाजिक जुड़ाव के चार प्रमुख पहलुओं को उजागर किया गया है। इसमें केअर्स वर्ल्डवाइड, विजडम सर्किल, सिल्वर टॉकीज, हेल्पएज इंडिया जैसे संस्थान शामिल हैं।