“जिसने ज्ञान बचाया, उसी पर लगा आरोपों का बोझ! ब्राह्मणों पर ऐतिहासिक अन्याय या राजनीति की साजिश?”

नई दिल्ली।भारत में जातिवाद पर चल रही बहस के बीच एक बार फिर ब्राह्मण समुदाय को लेकर नई चर्चाएँ तेज हो गई हैं। सदियों से ज्ञान-विज्ञान के वाहक रहे इस वर्ग पर आरोप लगे कि उन्होंने समाज को जातियों में बाँट दिया। लेकिन जब ऐतिहासिक तथ्यों और ग्रंथों की छानबीन की जाती है तो कहानी कुछ और ही सामने आती है।

जातिव्यवस्था के जनक कौन?”

सबसे पहला प्रश्न यही उठता है कि आखिर जातिव्यवस्था को लिखित रूप में किसने प्रस्तुत किया? आमतौर पर लोग मनुस्मृति का नाम लेते हैं, परंतु क्या यह जानकर आप चौंकेंगे कि इसके रचयिता ‘मनु’ क्षत्रिय थे? महाभारत, गीता, 18 पुराणों के रचयिता वेदव्यास स्वयं ब्राह्मण नहीं थे। यही नहीं, कालिदास और अन्य कवि जिन्होंने जाति व्यवस्था का समर्थन किया – वे भी जन्म से ब्राह्मण नहीं थे।

ज्ञान के रक्षक बने आरोपों के शिकार”

इतिहास के पन्ने खंगालें तो ब्राह्मणों का एकमात्र उद्देश्य दीखता है – “लोक कल्याण”। उन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह अतुलनीय है। ऋषि भारद्वाज का ‘यंत्रसर्वस्वम्’ हो या वैमानिक शास्त्र, सुश्रुत की सुश्रुतसंहिता, चरक की चिकित्सा प्रणाली, आर्यभट्ट का गणितीय योगदान, या चाणक्य की अर्थशास्त्र – ये सभी विश्व को दी गईं अमूल्य धरोहरें हैं।

शक्ति होते हुए भी सत्ता से दूर”

एक सवाल यह भी उठता है कि जब ब्राह्मणों के पास इतनी विद्या और शक्ति थी, तो क्या उन्होंने कभी सत्ता संभाली? जवाब मिलता है – नहीं! क्योंकि उनका उद्देश्य हमेशा समाज को दिशा देना रहा, न कि शासन करना।

इतिहास का विकृतिकरण या सुनियोजित षड़यंत्र?”

आरोप लगते हैं कि स्वतंत्रता के बाद इतिहास लेखन का कार्य कुछ वामपंथी और विदेश-प्रेरित विचारधाराओं के हाथों में चला गया। उन्होंने अपने उद्देश्य के तहत ब्राह्मणों को ‘दोषी’ ठहराया और एक पूरी पीढ़ी को उनके विरुद्ध खड़ा कर दिया।

“जो संस्कृति बचाए, वो अपराधी कैसे?”

जब मुग़लों और अंग्रेजों ने शास्त्रों को जलाया, तब ब्राह्मणों ने उन्हें कंठस्थ कर अगली पीढ़ी तक पहुँचाया। जनेऊ-लंगोटी में जंगलों में साधना कर उन्होंने वेद, उपनिषद, आयुर्वेद, खगोलशास्त्र, दर्शन आदि का संरक्षण किया। ऐसे वर्ग को कैसे सामान्य कहा जा सकता है?

सवाल उठाना जरूरी है…”

क्या ब्राह्मण केवल आलोचना के पात्र हैं या उन्हें वह सम्मान भी मिलना चाहिए जिसके वे हक़दार हैं? क्या राजनीति और वैचारिक एजेंडों की भेंट चढ़ गया है एक ऐसा वर्ग जिसने अपने ऐश्वर्य का परित्याग कर केवल ज्ञान और धर्म के लिए जीवन होम कर दिया?

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