भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर इंतजार लंबा होता जा रहा है। ताजा संकेतों के मुताबिक, अगस्त से पहले जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी को लेकर कोई फैसला संभव नहीं है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, फिलहाल भाजपा का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव पर है। अनुमान है कि जुलाई तक इन राज्यों में संगठनात्मक नियुक्तियां पूरी होंगी और उसके बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर मंथन तेज होगा।
भाजपा के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले देश के आधे से अधिक राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों का चयन जरूरी है। इसके अलावा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सहमति भी इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती है। संघ का मत स्पष्ट है कि पार्टी का नेतृत्व किसी ऐसे नेता के हाथ में हो, जिसकी वैचारिक निष्ठा मजबूत हो और जो संगठन से निकटता से जुड़ा हो।
सूत्रों का कहना है कि बिहार विधानसभा चुनाव भाजपा नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नेतृत्व में ही लड़ेगी। गौरतलब है कि बिहार में चुनाव इस साल अक्टूबर या नवंबर में होने हैं। भाजपा के इतिहास में अध्यक्ष पद के चयन में इतनी देरी कम ही देखी गई है। इससे पहले जब अमित शाह और फिर जेपी नड्डा अध्यक्ष बने थे, तो प्रक्रिया काफी तेज रही थी।
प्रदेश अध्यक्षों के चयन में जातीय समीकरण भी अहम: उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजपूत होने के चलते संगठन की कमान ओबीसी समुदाय के किसी नेता को दी जा सकती है। वहीं, मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की पिछड़ी जाति से होने के कारण संगठनात्मक नेतृत्व किसी सवर्ण नेता को मिल सकता है।
अध्यक्ष पद की दौड़ में ये नाम शामिल: भाजपा अध्यक्ष पद के लिए जिन नामों की चर्चा सबसे अधिक है, उनमें शिवराज सिंह चौहान, भूपेंद्र यादव, सुनील बंसल, मनोहर लाल खट्टर और दक्षिण भारत से जी. किशन रेड्डी शामिल हैं। संघ चाहता है कि नए अध्यक्ष का चयन संगठन की मजबूती के लिहाज से हो क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव परिणामों ने भाजपा के लिए एक चेतावनी का काम किया है।