छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के एक बुजुर्ग दंपती को अपनी ही जमीन बेचने के लिए 14 साल तक संघर्ष करना पड़ा। अंततः बिलासपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में उन्हें न्याय दिया और उनके पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ कि न्याय देर से सही, लेकिन मिलता जरूर है।
महासमुंद जिले के बागबहरा ग्राम निवासी ईश्वरलाल अग्रवाल और उनकी पत्नी शंकुतला अग्रवाल (उम्र लगभग 64 वर्ष) को खसरा नंबर 1492 और अन्य संबंधित खसरों की कुल 0.800 हेक्टेयर भूमि का पट्टा मिला था। वे पिछले 36 वर्षों से इस जमीन का वैध उपयोग कर रहे थे और इसकी पूरी जिम्मेदारी निभाते हुए समय पर आवश्यक भुगतान भी कर रहे थे।
बुजुर्ग दंपती ने इस जमीन को बेचने के लिए कई वर्षों पहले महासमुंद कलेक्टर के समक्ष आवेदन दिया था, लेकिन प्रशासनिक अड़चनों और पुराने आदेशों के चलते अनुमति नहीं मिल पा रही थी। अंत में उन्होंने हाईकोर्ट में न्याय की गुहार लगाई, जहां अदालत ने कलेक्टर और राजस्व मंडल द्वारा पारित पुराने आदेशों को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि दंपती को उनकी भूमि बेचने की अनुमति 60 दिनों के भीतर दी जाए।
इस फैसले से न केवल बुजुर्ग दंपती को राहत मिली है, बल्कि ऐसे कई लोगों को भी उम्मीद जगी है जो वर्षों से प्रशासनिक अड़चनों में फंसे हैं। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि अगर इंसान अपने अधिकारों के लिए धैर्य और विश्वास के साथ लड़ाई जारी रखे, तो अंततः न्याय अवश्य मिलता है।