भारत में वनों की कटाई का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच और मैरीलैंड विश्वविद्यालय की ताजा रिपोर्ट ने चिंताजनक आंकड़े सामने रखे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने 2024 में 18,200 हेक्टेयर प्राथमिक वन क्षेत्र गंवा दिया, जो 2023 के मुकाबले अधिक है। इससे यह साफ होता है कि वन संरक्षण के प्रयास अभी भी पर्याप्त नहीं हैं।
2001 से अब तक भारत ने कुल 23.1 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र खोया है, जिससे लगभग 1.29 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन हुआ। यह न केवल जलवायु परिवर्तन को और तेज करता है, बल्कि जैव विविधता के लिए भी बड़ा खतरा है।
क्या हैं प्राथमिक वन और क्यों हैं जरूरी?
प्राथमिक वन वे क्षेत्र होते हैं, जो सदियों से प्राकृतिक रूप में मौजूद हैं और जिन पर मानवीय हस्तक्षेप ना के बराबर रहा है। ये पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखते हैं और हजारों वन्य प्रजातियों का घर होते हैं। इनकी कटाई से न सिर्फ जलवायु बिगड़ती है बल्कि भू-स्खलन, सूखा और जैव विविधता में गिरावट जैसे खतरे भी बढ़ते हैं।
लगातार गिरता हरियाली का ग्राफ
2002 से 2024 के बीच भारत ने 3.48 लाख हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन खो दिए, जो कुल वनक्षेत्र हानि का 15% हिस्सा है। पिछले वर्षों के आंकड़े भी चिंताजनक हैं:
- 2019: 14,500 हेक्टेयर
- 2020: 17,000 हेक्टेयर
- 2021: 18,300 हेक्टेयर
- 2022: 16,900 हेक्टेयर
- 2023: 17,700 हेक्टेयर
हर साल ये नुकसान बढ़ता ही जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, यह डेटा लैंडसैट सैटेलाइट इमेज के विश्लेषण पर आधारित है, जो विशेष एल्गोरिद्म से जांचा गया है।
समाधान क्या है?
वनों के इस लगातार क्षरण को रोकने के लिए भारत को स्थायी भूमि उपयोग की रणनीतियाँ अपनानी होंगी। वन संरक्षण कानूनों को मजबूत करने के साथ ही स्थानीय समुदायों को भी संरक्षण में भागीदार बनाना होगा। इसके बिना जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन को रोकना मुश्किल होगा।