क्यों भारतीय युवा ‘हम दो, हमारे दो’ के सिद्धांत से दूर हो रहे हैं? नौकरी और घर की समस्या बनी बड़ी रुकावट

भारत में युवा अब पारंपरिक छोटे परिवार के सिद्धांत ‘हम दो, हमारे दो’ से दूरी बना रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, युवा वर्ग बच्चों के जन्म में सबसे बड़ी रुकावट आर्थिक अस्थिरता और सीमित आवास को मान रहा है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • 38% युवा मानते हैं कि वित्तीय समस्याएं उन्हें परिवार बढ़ाने से रोकती हैं।
  • 21% युवा नौकरी की अनिश्चितता को बच्चे न पैदा करने की वजह मानते हैं।
  • 22% युवा घर की कमी को भी एक बड़ी रुकावट मानते हैं।
  • 18% युवा बच्चों की देखभाल की भरोसेमंद व्यवस्था न होने को कारण मानते हैं।
  • स्वास्थ्य समस्याएं, बांझपन, गर्भावस्था की देखभाल की कमी, और सामाजिक दबाव भी प्रमुख कारणों में शामिल हैं।
  • 19% लोग परिवार या जीवनसाथी द्वारा कम बच्चे पैदा करने के दबाव का भी सामना कर रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन, राजनीतिक अस्थिरता और भविष्य की अनिश्चितता भी फैसले को प्रभावित कर रही हैं।

UNFPA इंडिया की प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा कि भारत ने पिछले दशकों में प्रजनन दर घटाकर प्रति महिला औसतन दो बच्चों तक पहुंचने में बड़ी सफलता पाई है। हालांकि, अभी भी प्रजनन अधिकारों को लेकर असमानता मौजूद है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रजनन दर अभी भी अधिक है, जबकि दिल्ली, केरल, तमिलनाडु में यह प्रतिस्थापन दर से नीचे है।

वोजनार ने यह भी कहा कि भारत अगर हर व्यक्ति को अपने प्रजनन निर्णय लेने की स्वतंत्रता और संसाधन उपलब्ध कराए, तो दुनिया को दिखा सकता है कि आर्थिक विकास और प्रजनन अधिकार एक साथ संभव हैं।

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