आदिवासी समुदाय बचा रहा है भारत के फेफड़ों को जंगल विनाश से

भारत में तेजी से हो रहे वन विनाश की सच्चाई अब किसी से छुपी नहीं है। ब्राज़ील के बाद भारत उन देशों में शामिल हो गया है जहां वनों का बड़े पैमाने पर विनाश हो रहा है। बीते पांच वर्षों में, लाखों पेड़ कट चुके हैं। इसका सबसे बड़ा कारण खनिज संसाधनों की खोज और औद्योगिक विस्तार बताया जा रहा है। इस विनाश का सबसे गहरा असर छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के आदिवासी इलाकों पर पड़ा है।

मध्य भारत का जंगल — भारत के फेफड़े

जिस तरह अमेज़न के वर्षावनों को “पृथ्वी के फेफड़े” कहा जाता है, उसी तरह बोरी, बस्तर, कांकेर, अबूझमाड़ और सरगुजा जैसे क्षेत्रों के जंगल भारत के फेफड़े माने जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, अब ये भी खनन कंपनियों और परियोजनाओं की बलि चढ़ रहे हैं।

आदिवासी — वन संरक्षण के असली प्रहरी

इन कठिन परिस्थितियों के बावजूद, भारत के कई जंगल अब भी सुरक्षित हैं। इसका मुख्य कारण हैं — हमारे आदिवासी समुदाय। वे न केवल जंगलों के सहअस्तित्व में जीते हैं, बल्कि हर पेड़, नदी, पर्वत और जानवर को अपनी आत्मा का हिस्सा मानते हैं। वे जंगल की रक्षा में आंदोलन करते हैं, न्यायालयों का दरवाज़ा खटखटाते हैं और शांतिपूर्ण प्रतिरोध से सरकारों को सोचने पर मजबूर करते हैं।

भारत का पर्यावरण संरक्षण आदिवासी चेतना के बिना अधूरा है।

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