इंजीनियरिंग छोड़ी, खेतों को अपनाया: वल्लरी की स्ट्रॉबेरी ने बदली गांव की तस्वीर, बांस की टनल से रचा अनोखा कृषि मॉडल”

जब सपने मिट्टी से जुड़ते हैं, तब इतिहास रचा जाता है।”

महासमुंद की वल्लरी साहू की कहानी भी ऐसी ही है—एक ऐसी युवती जिसने चमकदार दफ्तरों को छोड़कर गांव की पगडंडियों पर अपनी नई दुनिया बनाई, जहां उसने खेतों को प्रयोगशाला बना डाला और इंजीनियरिंग के ज्ञान को खेती में उतार कर न केवल खुद का भविष्य संवारा, बल्कि गांव के 35 परिवारों की तकदीर भी बदल दी।

वल्लरी पेशे से एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर थीं। उन्होंने कॉलेज के बाद अच्छी खासी नौकरी पाई थी, पर मन कहीं और था। मशीनों और मीटिंग्स से दूर, कुछ ऐसा करने की चाह थी जो असल ज़मीन से जुड़ा हो। यही सोच उन्हें ले आई खेती की ओर—पर इस बार हाथ में सिर्फ हल नहीं, दिमाग में था नवाचार का खाका।

बांस की टनल से क्रांति:

वल्लरी ने सबसे पहले चुनौती को पहचाना—कम पानी और तेज धूप की समस्या। लेकिन वह घबराई नहीं। उन्होंने खोज निकाली “लो टनल फार्मिंग” की तकनीक, जिसमें बांस से टनल बनाकर पौधों को छाया और संरक्षित वातावरण दिया जाता है। इस बांस की टनल में स्ट्रॉबेरी उगाई गई, जो आमतौर पर पहाड़ी इलाकों की फसल मानी जाती है।

यह प्रयोग हिट रहा। कम पानी में ज्यादा उत्पादन हुआ, कीटनाशकों की ज़रूरत कम पड़ी, और फल की गुणवत्ता बनी रही।

35 लोगों को मिला रोजगार:

वल्लरी की इस फार्मिंग यूनिट में आज 35 लोग काम कर रहे हैं, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं। ये महिलाएं अब आत्मनिर्भर हैं—किसी की बेटी की पढ़ाई जारी है, तो कोई घर में नई छत डलवा रही है। वल्लरी के लिए ये आंकड़े नहीं, बल्कि जीते-जागते बदलाव हैं।

लोकल टू ग्लोबल:

वल्लरी की स्ट्रॉबेरी अब सिर्फ महासमुंद में नहीं, बल्कि रायपुर, भिलाई जैसे शहरों में भी बिकती है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए उन्होंने एक ब्रांड बना लिया है। लोग अब उन्हें ‘स्ट्रॉबेरी क्वीन ऑफ छत्तीसगढ़’ कहकर पुकारने लगे हैं।

परिवार और समाज की सोच बदली:

शुरुआत में लोगों ने कहा – “इंजीनियर होकर खेती करेगी?” लेकिन आज वही लोग उनके फार्म पर ट्रेनिंग लेने आ रहे हैं। परिवार को भी उन पर गर्व है और गांव के युवा उन्हें आदर्श मानते हैं।

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