कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर नए सिरे से सवाल उठने लगे हैं। चर्चा का विषय यह है कि राहुल गांधी जिन नेताओं को अपनी सबसे करीबी टीम में जगह दे रहे हैं, उनमें से कई नेता तो खुद कभी चुनाव नहीं जीत सके — ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक।
पवन खेड़ा, जयराम रमेश, सुप्रिया श्रीनेत, रागिनी नायक और कन्हैया कुमार — ये पांच चेहरे फिलहाल कांग्रेस की मीडिया, बयानबाजी और रणनीति का केंद्र बने हुए हैं। लेकिन सवाल ये है: क्या सिर्फ मीडिया में दिखने वाले नेता, जिनका खुद का जनाधार नहीं है, पार्टी को जमीनी मजबूती दे सकते हैं?
राहुल गांधी की ‘मीडिया टीम’:
- पवन खेड़ा: कांग्रेस के तेज़तर्रार प्रवक्ता। धारदार बयानों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन खुद कभी चुनाव नहीं लड़े।
- जयराम रमेश: कांग्रेस के नीति निर्माता, पर कई सालों से चुनावी राजनीति से दूर।
- सुप्रिया श्रीनेत: टीवी डिबेट की मजबूत आवाज़, मगर जनाधार की राजनीति में जगह नहीं बना पाईं।
- रागिनी नायक: छात्र राजनीति से आईं, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में कोई बड़ी जीत दर्ज नहीं।
- कन्हैया कुमार: जेएनयू से चर्चा में आए, पर लोकसभा चुनाव हार गए।
क्या राहुल गांधी बना रहे हैं ‘इको चेंबर’?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जो सिर्फ उनकी हां में हां मिलाते हैं। ऐसे में पार्टी की जमीनी सच्चाइयां और कार्यकर्ताओं की असली आवाज़ दबती जा रही है।
अंदर से उठ रही नाखुशी
कांग्रेस के कई पुराने नेता मानते हैं कि अगर रणनीति वही लोग तय करेंगे जिनका खुद का कोई जनाधार नहीं, तो पार्टी कैसे मजबूत होगी? एक सीनियर नेता ने कहा, “मीडिया में दिखने वाले चेहरों से पार्टी नहीं चलती, पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता से चलती है।”
कांग्रेस को ज़मीन पर लौटना होगा
अगर कांग्रेस को वाकई मजबूत करना है तो उन नेताओं को आगे लाना होगा जो जनता के बीच लोकप्रिय हैं। नहीं तो पार्टी सिर्फ सोशल मीडिया और प्रेस कॉन्फ्रेंस तक ही सिमट कर रह जाएगी।