फैशन के दौर में टैटू बनवाना आम चलन बन चुका है, लेकिन जब बात धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओं के नामों या चित्रों की हो, तो मामला केवल फैशन तक सीमित नहीं रहता। संत प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय में गहराई से प्रकाश डाला है और बताया है कि शरीर पर भगवान के नाम या चित्रों का टैटू बनवाना क्यों अनुचित माना जाता है।
भगवान का नाम है शक्ति का स्रोत
प्रेमानंद जी के अनुसार, भगवान का नाम मात्र लेने से पाप नष्ट होते हैं और आत्मा शुद्ध होती है। लेकिन जब इसी नाम को शरीर पर स्थायी रूप से गुदवाया जाता है, तो यह श्रद्धा से अधिक फैशन का प्रतीक बन सकता है, जिससे उसकी पवित्रता प्रभावित होती है।
धार्मिक दृष्टिकोण से टैटू क्यों गलत?
संत जी ने स्पष्ट किया कि शरीर पर भगवान का चित्र या नाम गुदवाने से वह समय आता है जब स्नान के दौरान वह टैटू जल के संपर्क में आता है और पैर तक पहुंचता है। इससे धार्मिक दृष्टिकोण से अनादर की स्थिति बनती है। इसके अलावा, दिनभर में शरीर कई अपवित्र वस्तुओं के संपर्क में आता है, जिससे टैटू की पवित्रता नष्ट हो सकती है।
मेहंदी में देवी-देवताओं की आकृति वर्जित
प्रेमानंद महाराज ने मेहंदी में भी देवी-देवताओं के चित्रों के उपयोग को अनुचित बताया। उनका मानना है कि यह श्रद्धा की मर्यादा का उल्लंघन है और इससे दैवीय क्रोध भी प्राप्त हो सकता है।
श्रद्धा से जुड़ा है संयम
सनातन परंपरा में श्रद्धा के साथ मर्यादा भी आवश्यक है। प्रेमानंद जी का संदेश यही है कि ईश्वर के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके नाम या चित्र को शरीर पर गुदवाने से बचना चाहिए और उन्हें मन, वचन और कर्म से स्मरण करना चाहिए।