छत्तीसगढ़ कांग्रेस में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पर पिछले 6 महीने से खींचतान जारी है। वजह है—‘गुजरात फॉर्मूला’। कांग्रेस हाईकमान की तरफ से थोपे गए इस फॉर्मूले ने प्रदेश संगठन की राह मुश्किल कर दी है। कई जिलों में नेताओं की आपसी खींचतान और जातीय समीकरणों के कारण सूची अब तक जारी नहीं हो पाई है।‘गुजरात फॉर्मूला’ के तहत हर जिले में एक अध्यक्ष, एक कार्यकारी अध्यक्ष और एक को-ऑर्डिनेटर की नियुक्ति होनी है। उद्देश्य था—संगठन को मजबूत करना और ज्यादा नेताओं को जिम्मेदारी देना। लेकिन छत्तीसगढ़ में यह उलटा असर डाल रहा है।क्या है पेंच:कई वरिष्ठ नेता एक-दूसरे के नाम पर सहमत नहीं हैं।जातीय संतुलन और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को लेकर भी विवाद।कुछ जिलों में विधायक और पूर्व सांसद के बीच रस्साकशी।प्रदेश प्रभारी और स्थानीय नेतृत्व के बीच मतभेद।सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने लगभग 6 महीने पहले हाईकमान को प्रस्ताव भेजा था, लेकिन अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। पार्टी नेताओं को अब विधानसभा चुनाव की तैयारियों से पहले नियुक्ति की उम्मीद थी, लेकिन मामला फिर टल गया है।नेताओं की चुप्पी:पार्टी के वरिष्ठ नेता इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से बच रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक पदाधिकारी ने बताया—“हमने जो नाम भेजे थे, उन्हें लेकर अब तक कोई फीडबैक नहीं आया है। दिल्ली से क्लियरेंस नहीं मिल रहा। सबकुछ वहीं अटका है।”आगे क्या:अब उम्मीद जताई जा रही है कि लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद संगठनात्मक नियुक्तियों पर फिर से विचार होगा। लेकिन तब तक आधिकारिक घोषणा न होने से कार्यकर्ताओं में भी असमंजस बना हुआ है।पार्टी की चिंता:कांग्रेस को डर है कि देर होती रही तो जिलों में संगठनात्मक ढांचा कमजोर पड़ सकता है, जिससे चुनावों में नुकसान उठाना पड़ सकता है।