बॉम्बे हाईकोर्ट: आज इलेक्ट्रॉनिक सबूत, पारंपरिक सबूतों की जगह ले रहे हैं, मजिस्ट्रेट को ज्यादा अधिकार दिए जाने की जरूरत है!

अभिमनोज

बॉम्बे हाईकोर्ट का कहना है कि- आज इलेक्ट्रॉनिक सबूत, पारंपरिक सबूतों की जगह ले रहे हैं, इसलिए मजिस्ट्रेट को ज्यादा अधिकार दिए जाने की जरूरत है.
खबरें हैं कि…. बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने विवाहेतर संबंध के आरोप की जांच के लिए एक मामले में महिला को आवाज का नमूना देने का आदेश दिया है और कहा है कि- इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की जांच जरूरी है, आज ये पारंपरिक साक्ष्यों की जगह ले रहे हैं.
खबरों की मानें तो…. इस महिला ने फैमिली कोर्ट में पति और ससुराल वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया था, पति ने अपने बचाव में पत्नी और उसके कथित प्रेमी की बातचीत की रिकॉर्डिंग अदालत में दी थी, लेकिन महिला ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि रिकॉर्डिंग में आवाज उसकी नहीं है.
खबरों की मानें तो…. इसके बाद पति ने अहमदनगर जिले के पारनेर में मजिस्ट्रेट कोर्ट में पत्नी को वॉयस सैंपल देने का आदेश देने की याचिका दायर की थी, जिसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था, इसके बाद पति हाईकोर्ट पहुंचा, जहां मजिस्ट्रेट कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया गया और महिला को तीन हफ्तों के भीतर वॉयस सैंपल देने का आदेश दिया गया.
इस मामले में अदालत का कहना है कि- यह सैंपल फोरेंसिक लैब को भेजा जाएगा, ताकि सच जाना जा सके.
खबरों पर भरोसा करें तो…. जस्टिस शैलेश ब्राह्मे की बेंच ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि- घरेलू हिंसा अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि किसी को वॉयस सैंपल देने के लिए मजबूर किया जा सके, परन्तु यह मामला आधा सिविल और आधा क्रिमिनल प्रकृति का है.
उल्लेखनीय है कि…. इस महिला के पति ने दावा किया था कि- उसकी पत्नी का किसी और से संबंध है, इस दावे को साबित करने के लिए पति ने मेमोरी कार्ड और सीडी में रिकॉर्ड की गई आवाजें भी अदालत में जमा की थी और पति चाहता है कि- इन रिकॉर्डिंग का उनकी पत्नी की वास्तविक आवाज से मिलान किया जाए.
इस मामले में जस्टिस ब्राह्मे ने यह भी कहा कि- आज के तकनीकी युग में इलेक्ट्रॉनिक सबूत पारंपरिक सबूतों की जगह ले रहे हैं, इसलिए मजिस्ट्रेट को ज्यादा अधिकार दिए जाने की जरूरत है!

साभार: पलपल इंडिया

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