नई दिल्ली: भारत में लंबे समय से चर्चा में रही ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ योजना पर केंद्र सरकार ने तेज़ी से काम शुरू कर दिया है। सरकार का लक्ष्य है कि साल 2034 तक लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके लिए जरूरी संवैधानिक संशोधनों पर गंभीरता से मंथन चल रहा है।
केंद्र सरकार ने इस उद्देश्य के लिए संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और संघ राज्य क्षेत्र कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 संसद में पेश कर दिए हैं। इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा गया है, जिसमें 39 सदस्य शामिल हैं। यह समिति 90 दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
जेपीसी के अध्यक्ष और भाजपा सांसद पी. पी. चौधरी ने बताया कि समिति सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का दौरा कर रही है। अब तक महाराष्ट्र और उत्तराखंड में चर्चा हो चुकी है। संभावना है कि समिति का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है ताकि अधिक से अधिक जनमत और सुझाव लिए जा सकें।
क्या है योजना का मुख्य बिंदु?
इस योजना के अनुसार, 2029 के लोकसभा चुनाव के बाद सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल समायोजित किया जाएगा ताकि 2034 में लोकसभा और राज्य चुनाव एक साथ हो सकें। इसके लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल छोटा किया जाएगा। उदाहरण के लिए, 2032 में उत्तर प्रदेश में संभावित विधानसभा चुनाव केवल दो वर्षों के कार्यकाल के लिए हो सकते हैं।
संविधान संशोधन के प्रस्ताव:
इसमें प्रस्तावित है कि राष्ट्रपति लोकसभा के पहले सत्र की तारीख को “नियत तिथि” के रूप में अधिसूचित करेंगे। इसके बाद, राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल उसी लोकसभा के पांच वर्षों तक सीमित रहेगा। यदि किसी कारणवश विधानसभा या लोकसभा समय से पहले भंग होती है, तो दोबारा चुनाव शेष अवधि के लिए ही कराए जाएंगे।
विशेष परिस्थितियों में लचीलापन:
यदि किसी राज्य में चुनाव कराना संभव नहीं है, तो चुनाव आयोग राष्ट्रपति से चुनाव टालने की सिफारिश कर सकता है। इसके बाद राष्ट्रपति विशेष राज्य में चुनाव की नई तारीख घोषित कर सकते हैं।
राम नाथ कोविंद समिति की सिफारिशें:
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रारूप के लिए 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन हुआ था। समिति ने मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की। हालांकि, फिलहाल पंचायत और नगर निकाय चुनाव इस योजना में शामिल नहीं किए गए हैं।
पक्ष और विपक्ष की राय:
भाजपा और इसके सहयोगी दलों ने इस कदम को खर्च बचाने और शासन में स्थिरता लाने वाला बताया है। दूसरी ओर, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे विपक्षी दलों का मानना है कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है और इससे क्षेत्रीय दलों की शक्ति कमजोर होगी।
लोकसभा में विधेयक पेश करते समय 269 सांसदों ने पक्ष में और 198 सांसदों ने विरोध में मतदान किया था।